Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 24
पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : चाचर : 2 : 24
चाचर : 2 : 24
पुजबे को बहु देव , समुझि मन बौरा हो !
शब्द अर्थ :
पुजबे = पूजा करने ! बहु = बहुत ! देव = ईश्वर , भगवान , देवो की मूर्तिया ! समुझि = समजो ! मन बौरा हो = मन का पागल है !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर चाचर के इस पद में कहते है भाईयों आप लोगोने ने जो अपने देवालय में अनेक देवो की अनेक ईश्वर की , अनेक देवी देवता के अवतार की मुर्ती फोटो लगा रखी है और विभिन्न तरह तरह के देवी देवता जैसे मच्छ कच्छ वरह आदी ब्रह्मा और न जाने हजारो अंतहीन देवी देवाता ज़िस की संख्या तुम 33 करोड बताते हो और पूजते हो ज़िनमे बहुत सारे भूत प्रेत पापी भी है क्या ये ऊचित है ? परमात्मा कबीर मुर्ती पूजा , अवतार , देवी देवता की प्राण प्रतिष्ठा , उनको गाय बैल घोडे , मूर्गी बकारी की बली देना उनकी पूजा के लिये होम हवन करना दारू सोंमरस से पूजा आदी सभी बातोंको बेवकुफी पागलपन और मूर्खता मानते है !
परमात्मा कबीर एक निरंजन अमर अजर सर्व व्यापी सर्वद्यन चेतन तत्व राम जो निराकार निर्गुन को ही अंतिम सत्य मानते है वही सत्य शिव सुन्दर जगत निर्माता मालक चालक है उसकी कोई छबी नही ना उसकी कोई मुर्ती बन सकती है वह प्रग्या बोध चिरंतन निरंजन है उसकी पूजा उसे शिल सदाचार के आचरण से ही की जा सकती है फल फुल धुप दिप अगरबत्ती , कोई प्राणी बली दारू अन्न की अग्नी मे या प्रसाद की आहुती से नही हो सकती ! अधर्म से धर्म नही निभाया जा सकता , दुराचार से सदाचार के फल नही मिल सकते !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती,
मुलभारतिय हिन्दुधर्म विश्वपीठ ,
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