Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 23
पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : चाचर : 2 : 23
चाचर : 2 : 23
नहाने को तीरथ घना , मन बौरा हो !
शब्द अर्थ :
नहाने = शुद्धी करण ! तीरथ = धार्मिक तिर्थ स्थान जैसे प्रयाग , हरिद्वार आदी ! घना = बहुत ! मन बौरा हो = मन मे अशंती , डर !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर चाचर के इस पद में कहते है जो लोग विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के चंगुल में फसे हुवे है उनसे कोई पुन्य का काम , धर्म का काम होता नही वो ऊलटे पाप कर्म , अधर्म झूठ मक्कारी आदी मन को पीडा देने वाले कार्य में फसे हुवे होने के कारण व्यथित होते है उनहे मन में डर होता है बहुत पाप हुवे और नर्क मे जायेंगे या आज नही तो काल पाप कर्म का फल भूगतना पडेगा इस लिये ऐसे डरे व्यथित लोग मन गढंत तिर्थ , गंगा नहना आदी में उल्जे हुवे है और एक तिरथ से दुसरे तिरथ और अनेक प्रकार के सोंग धतुरे मे फसे हुवे है ! कबीर साहेब ने एसे डरे हुवे लोगोंको बताया है भाईयों विदेशी ब्राह्मण पांडे पूजारी के चक्कर में ना पडो वो तुम्हे सद धर्म सदाचार का मार्ग मुलभारतिय हिन्दूधर्म कभी नही बातायेंगे , इस मुलभारतिय हिन्दुधर्म का पालन करोगे तो ना अधर्म होगा ना पाप शुद्धी की चिंतां सतायेगी न तिरथ तिरथ घुमाना पडेगा !
मुलभारतिय हिन्दूधर्म का मार्ग ही सच्चे मुक्ती का और मानव जीवन कल्यान का मार्ग है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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